
फ्रांस की राजधानी पेरिस में ओलंपिक 2024 का मैदान सजने लगा है। दूनियाभर के हजारों खिलाड़ी इसमें भाग लेकर अपने-अपने देश का नाम रोशन करने के लिए दमखम दिखाते नजर आएंगे। खेलों के इस महाकुंभ के लिए मशाल रेली का आयोजन 8 मई 2024 को किया गया था। लेकिन क्या आप इस भव्य मशाल का इतिहास जानते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको ओलंपिक मशाल के गौरवान्वित इतिहास से रूबरू करवाएंगे।
एम्सटर्डम ओलंपिक से शुरु हुआ मशाल का सफर
1896 में ग्रीस की राजधानी एथेंस से शुरु हुए खेलों के महाकुंभ के शुरुआती सात संस्करणों में मशाल का उपयोग नहीं किया गया। लेकिन 1928 में एम्सटर्डम में आयोजित ओलंपिक खेलों में पहली बार ओलंपिक मशाल का सफर शुरु हुआ। एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार एक ऊंची मीनार पर मशाल जलाई गई। जो पूरे टूर्नामेंट के दौरान जलती रही। इसके बाद यह रवायत जारी रही।
हालांकि बर्लिन ओलंपिक 1936 में इस रवायत को एक कदम बढ़ाते हुए मशाल यात्रा का ओयजन किया गया। जिसमें मेजबान देश के अलावा अन्य देशों में भी मशाल यात्रा की जाने लगी। वहीं 1952 में आयोजित ओस्लो ओलंपिक में पहली बार मशाल की हवाई यात्रा की शुरुआत हुई। वहीं इसके अगले ओलंपिक में मशाल को घोड़े की पीठ पर यात्रा संपन्न की गई। 1968 ओलंपिक में पहली बार मशाल ने समुद्री सफर किया।
हालांकि मांट्रियल ओलंपिक 1976 में पहली बार कनाडा ने एथेंस से ओटावा तक के मशाल सफर का सेटेलाइट प्रसारण किया गया। वहीं 1994 के लिलेहैमल शीतकालीन ओलंपिक में पहली बार मशाल का हवा में आदान- प्रदान किया गया। यहीं नहीं सिडनी ओलंपिक 2000 में मशाल को समुद्र की गहराइयों में उतारकर नया इतिहास रचा गया।
पेरिस ओलंपिक 2024 में मशाल का बेहतरीन डिजाइन
पेरिस ओलंपिक 2024 में ओलंपिक मशाल के लिए फ्रांसीसी डिजाइनर मैथ्यू लेहानूर ने अहम योगदान दिया है। पेरिस 2024 मशाल की पहचान सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से उसके रंग से होती है, जो अद्वितीय और चमकदार दोनों है। आगामी खेलों को दर्शाने के लिए, लेहानूर ने पेरिस 2024 के तीन थीमों से प्रेरणा ली है जिसमें समानता, जल और शांति शामिल है।